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पैकेज्ड फूड की वैश्विक जांच

सरकार को और अधिक मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं बनाने, राज्य सरकार के स्तर पर कार्यशील खाद्य प्रयोगशालाएं सुनिश्चित करने और अधिक प्रशिक्षित जनशक्ति तैयार करने तथा मानदंडों के कार्य को सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। - के.के. श्रीवास्तव

 

भारतीय मसाला निर्यात उद्योग पर विश्वास का संकट खड़ा हो गया है। हांगकांग, सिंगापुर सहितकुछ देशों ने शीर्ष भारतीय ब्रांडों एमडीएच और एवरेस्ट द्वारा बेचे जाने वाले मसाला मिश्रण में संभावित संदूषण के जांच की घोषणा की है। शिकायतों में मसाले में इथाईलीन ऑक्साइड की मौजूदगी का हवाला दिया गया है जो खाद्य पदार्थ को स्थिर करने वाले के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाला एक जहरीला रसायन है जो सीमा से अधिक है। हालांकि अपने आधिकारिक बयान में सरकार ने कहा है की जिन देशों से शिकायतें प्राप्त हुई हैं और जिस पर सरकार ने संज्ञान लिया है वहां कुल मसाला निर्यात का महज एक प्रतिशत ही भेजा जाता है। अगर समय रहते चीज ठीक नहीं होती है तो मसाला कारोबार के सालाना लगभग 50 हजार करोड रुपए के निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

पैकेज्ड मसाले को लेकर सवाल उठाने वाले सिर्फ दो ही देश नहीं है बल्कि इसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका सहित लगभग पांच देशों ने शिकायतें की है तथा अपने स्तर पर जांच कार्य भी शुरू कर दिया है। इसके जवाब में भारतीय मसाला बोर्ड ने विदेशों में भेजे जाने वाले उत्पादों का अनिवार्य परीक्षण शुरू कर दिया है और कथित तौर पर संदूषण के मूल कारण की पहचान करने के लिए निर्यातकों के साथ भी काम कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय जांच ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) से घरेलू बाजारों में बेचे जाने वाले मसाले और करी पाउडर पर कड़ी गुणवत्ता जांच सुनिश्चित करने की मांग भी बढ़ा दी है।

सिंगापुर, हांगकांग, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने अपनी शिकायतों में कहा है कि भारतीय उत्पादों में खतरनाक संदूषक हैं जिससे कुछ प्रकार के कैंसर विकसित होने की संभावना है। दोनों आरोपी कंपनियों ने किसी न किसी तरीके से नियामक अधिकारियों की कार्रवाई को कमतर आंकने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए एमडीएच इथीलीन ऑक्साइड के उपयोग से इनकार करता है, फिर भी क्षेत्र के नियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने जांच का फैसला किया है। हालांकि एफएसएसएआई ने उन दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट को खारिज कर दिया कि भारतीय जड़ी बूटियां और मसालों में बहुत अधिक कीटनाशक होते हैं।

कड़वी सच्चाई यह है कि खाद्य पदार्थों के लिए निर्धारित मानक काफी व्यापक और सख्त हो सकते हैं, लेकिन खाद्य प्रसंस्करण को नियंत्रित करने वाले नियमों को लागू करना सुरक्षा परीक्षणों के लिए गंभीर रूप से अपर्याप्त है। बुनियादी स्तर पर खेदजनक तथ्य यह है कि सरकार के पास परीक्षण उद्देश्यों के लिए न तो सही और न ही पर्याप्त संख्या में प्रयोगशालाएं हैं और न ही इस काम को अंजाम देने के लिए पर्याप्त कर्मचारी ही हैं। एक तथ्य यह भी है कि निर्यात नियम अलग-अलग देश में अलग-अलग होते हैं जिनमें कोई सामान्य मानक नहीं होता। ऐसे में निर्यातक कंपनियों को प्रत्येक देश को नियंत्रित करने वाले नियामक पहलुओं के बारे में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। वैसे भी जानबूझकर कोई नामी गिरामी कंपनी मिलावटी उत्पाद नहीं बेचना चाहेगी। संभव है कि समस्या ज्ञान अंतर का हो। इतना ही नहीं, यहां तक की परीक्षण पद्धतियों से भी समझौता किया जा सकता है, क्योंकि संबंधित कंपनी मानकीकृत मानक संचालन प्रक्रिया का अनुपालन करने में सफल हो सकती है। इसके बाद उसे नमूने को पारित करना पड़ सकता है जिसे मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए थी।

फिर भी भारतीय मसाले एक बुरी वजह से इस समय सुर्खियों में है। लेकिन यह समस्या केवल निर्यातित मसाले तक ही सीमित नहीं है हाल के दिनों में मिलावटी खाद्य पदार्थों को लेकर ढेर सारी रिपोर्ट आए दिन मीडिया में छपती रही है। कई तरह के नकली पेय पदार्थ बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे हैं। जिस तरह विदेश में भारतीय मसाले को लेकर सवाल खड़े हुए हैं वैसे ही भारत में नेस्ले के शिशु आहार उत्पादन में अत्यधिक चीनी के मिलावट के बारे में सवाल उठते रहे हैं। नेस्ले ने इससे इनकार किया है तथा चीनी की मात्रा भारत में स्वीकार्य से कम होना बताया है। अमेरिका ने भारतीय मसाले को कैंसरकारी घोषित कर दिया है जिसके चलते वहां मसाले की आयात दर पिछले एक साल में कम हुई है। यूरोपीय संघ ने भी भारतीय मूल की अच्छी वस्तुओं को जांच के दायरे में रखा है। भारत के प्रसिद्ध ब्रांडों के लिए यह आशंका पैदा करने वाला है। विवादों से यह भी आशंका पैदा होती है कि भारतीय बाजार का एक बड़ा हिस्सा कम से कम विनियमन और परीक्षण प्रक्रियाओं से अनभिज्ञ हो सकता है या वह जानबूझकर नियामक रडार को बाईपास करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रत्येक नागरिक को यह चिंता सताती रहती है कि उनके द्वारा खाए जाने वाले खाद्य उत्पाद सुरक्षित हैं कि नहीं। कारोबार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण मिलावट हर जगह देखने को मिलती है कहीं दूध में पानी की मिलावट तो कहीं मसाले में रंगों की, दूध, चाय, चीनी, दाल, अनाज, हल्दी, फल, आटा, तेल, घी आदि ऐसी तमाम तरह की घरेलू उपयोग की वस्तुओं में मिलावट की जा रही है। पूरे पैसे खर्च करके भी आम आदमी को शुद्ध खाने का सामान नहीं मिल पाता। मिलावट इतनी सफाई से होती है कि असली खाद्य पदार्थ और मिलावटी खाद्य पदार्थ में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। घी के नाम पर चर्बी, मक्खन की जगह मार्गग्रीन, आटे में सेलखड़ी का पाउडर, हल्दी में पीली मिट्टी, काली मिर्च में पपीते के बीज, कटी हुई सुपारी में कटे हुए छुहारे की गुठलियां मिलाकर बेची जा रही है नकली मावा और नकली दूध का बिकना तो आम बात है। अब तो नकली जीरे का कारोबार भी देश के कई हिस्सों में पहुंच चुका है। आज देश दुनिया में जिस तरह कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार, उच्च रक्त चाप जैसी अनेक बीमारियां तेजी से फैल रही है तथा चिंताजनक गति से लोगों को गिरफ्त में ले रही हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि लगातार बढ़ती संपन्नता हमारे खान-पान और आदतों में बदलाव ला रही है। हम स्वस्थ उत्पादों की ओर झुक रहे हैं, तब हमें एहसास होता है कि हमारे पैक किए गए खाद्य पदार्थों में अत्यधिक चीनी मिलाई गई है। इसीलिए स्वास्थप्रद पदार्थ हमें लाभ कम नुकसान अधिक दे रहे हैं।

एफएसएसएआई की स्थापना खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम लागू होने के दो साल बाद वर्ष 2008 में की गई थी। यह छोटी, मध्य और बड़ी स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय सभी कंपनियों के लिए सुरक्षा के मानकों को देखता है। इसका क्षेत्र बहुत बड़ा है लेकिन बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी के कारण इसका काम प्रभावित हुआ है। इसने विपदा के एक बड़े वर्ग को विशेषज्ञ मार्गदर्शन और शोध द्वारा निर्धारित नियामक निरीक्षण के बजाय नियमों को कागजी कार्रवाई के रूप में देखने के लिए प्रेरित किया है। एफएसएसएआई वास्तव में उपभोक्ताओं और व्यवसायियों दोनों को खाद्य सुरक्षा मुद्दों और मानदंडों पर शिक्षित करने के लिए बाध्य है। इसका उद्देश्य भोजन की खपत, जैविक जोखिम की घटना और व्यापकता, भोजन में संदूषण, खाद्य उत्पादों में विभिन्न संदूषकों के अवशेषों के संबंध में डाटा एकत्र करना और जोखिमों की पहचान करना है। वास्तव में इसका दायरा बहुत बड़ा है। सरकार समय-समय पर इसे और चुस्त दुरुस्त करने के लिए सहयोग करती रही है, लेकिन फिर भी यदा कदा मिलावट और अन्य तरह के आरोप लगते रहे हैं। एजेंसी कार्रवाई भी करती है लेकिन कई बार अदालतों ने प्रक्रियात्मक कमियों के कारण एजेंसी की कार्रवाइयों को खारिज कर दिया। जैसे कि वर्ष 2015 में न्यूट्रास्यूटिकल्स के मामले में।

एफएसएसएआई के पास 200 से अधिक खाद्य परीक्षण  प्रयोगशालाओं का नेटवर्क है, लेकिन लगातार बढ़ते उद्योग के आकार, इसमें शामिल खिलाड़ियों की संख्या और उनके द्वारा खेले जाने वाले क्षेत्रों और निर्यात बाजार के विस्तार को देखते हुए यह संख्या अपर्याप्त है। सरकार को और अधिक मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं बनाने, राज्य सरकार के स्तर पर कार्यशील खाद्य प्रयोगशालाएं सुनिश्चित करने और अधिक प्रशिक्षित जनशक्ति तैयार करने तथा मानदंडों के कार्य को सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। मानकों को नियमित रूप से अधिकतम करने और इसे शक्ति से लागू करने की आवश्यकता है और निश्चित रूप से सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ आगे आने की जरूरत है। 

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