अमृत बेला का स्वदेशी बजट
प्राकृतिक खेती और जैविक खाद के उपयोग को बढ़ाने के साथ-साथ गोवर्धन योजना के तहत 500 नये अवशिष्ट से सम्पदा संयंत्रों द्वारा काम में लिये जाना तथा तटीय क्षेत्रों में मेंगरोव-पौधाकरण योजना पर्यावरण के बढ़ते हुए ख़तरों से हमारी रक्षा करेगी। - डॉ. धनपतराम अग्रवाल
माननीया वित्त मंत्री द्वारा 2023-24 साल का जो बजट भारतीय संसद में 1 फरवरी 2023 को पेश किया गया, वह स्वदेशी चिंतन और स्वावलम्बन के सिद्धांतों पर आधारित है। सरकार समझ चुकी है कि स्वरोज़गार और उद्यमिता तथा कौशल विकास दीर्घगामी आर्थिक विकास के लिये अपरिहार्य हैं। सरकार ने सहकारिता, विकेंद्रित व्यवस्था तथा पर्यावरण के विषय को वरीयता दी है। प्राकृतिक खेती और जैविक खाद के उपयोग को बढ़ाने के साथ-साथ गोवर्धन योजना के तहत 500 नये अवशिष्ट से सम्पदा संयंत्रों द्वारा काम में लिये जाना तथा तटीय क्षेत्रों में मेंगरोव-पौधाकरण योजना पर्यावरण के बढ़ते हुए ख़तरों से हमारी रक्षा करेगी। स्थानीय वस्तुओं विशेषकर ग्रामोद्योग तथा लघु-उद्योग को प्रोत्साहन तथा उनके लिये उचित विपणन एवं ऋण की व्यवस्था के लिये आवश्यक नीति निर्देश दिये हैं। बिना किसी संपत्ति के गिरवी रखे सरकारी गारंटी पर ऋण से लगभग 2 लाख करोड़ रुपये उपलब्ध कराये जाएँगे जिन पर 1 प्रतिशत ब्याज में भी छूट दी जायेगी। सरकार ने इसके लिये 900 करोड़ रुपये का एक कोरपस फंड बनाया है ताकि किसी बैंक के संभावित नुकसान की भरपाई की जा सके। हमारे देश में 6.3 करोड़ से अधिक लघु उद्योग हैं जो सकल घरेलू उत्पाद का 31 प्रतिशत और हमारे निर्यात का 45 प्रतिशत हिस्सा प्रदान करता है तथा लगभग 12 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है। यानि कृषि और लघु उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था के बुनियाद हैं और इस बजट में इन दोनों क्षेत्रों के विकास का और उनकी समस्याओं को सुलझाने का भरसक प्रयास किया गया है।
युवाओं और महिलाओं के सर्वांगीण विकास तथा उनकी ऊर्जा का राष्ट्र-निर्माण में योगदान को स्वीकार किया है। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा कौशल सम्मान के द्वारा पारम्परिक कारीगरों और शिल्पकारों को विश्वकर्मा के रूप में जाना जाता है और इसलिये इस योजना के तहत उनके उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ाने तथा उचित मूल्य पर उनके विपणन की व्यवस्था पर ज़ोर दिया गया है।
कृषि तथा मत्स्य एवं पशुपालन पर आधारित जीविका में सुधार के लिये आवश्यक निर्णय भी लिये हैं। मत्स्य संपदा की योजना के तहत छोटे मछुवारों के लिये 6000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। देश के छोटे किसानों को नगद आर्थिक मदद से लगभग 11.4 करोड़ किसान लाभान्वित हो रहे हैं और 2.2 लाख करोड़ रुपये सीधे उनके बैंक में जमा कराये जाने से बिचौलियों द्वारा उनको वंचित करने का रास्ता बंद हो गया है। 47.8 करोड़ जन-धन योजना में बैंक खाते खुल चुके हैं। सरकार ने जल जीवन योजना के तहत 9 करोड़ लोगों के घरों में पीने के पानी की व्यवस्था की है और 11.7 करोड़ शौचालयों की व्यवस्था की है जो ग्राम्य-जीवन के जीवन-स्तर को उत्तम बनाने में एकसराहनीय कदम है जो लगातार कई वर्षों से सरकार पालन कर रही है ताकि अंत्योदय तथासमावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। ये कदम विकास के प्रयास में आर्थिक विषमता को भी दूर करने में सहायक होंगे। इन सब बातों के नतीजे आने वाले वर्षों में भारत को बेरोज़गारी और ग़रीबीमुक्त एक उन्नत एवं समृद्धशाली राष्ट्र बनाने में सहायक होंगे, ऐसी आशा है।
वर्तमान में महंगाई एक बड़ी समस्या है। कोविड महामारी तथा रुस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सारा विश्व मंदी और महंगाई की चपेट में है। एक तरफ़ अमेरिका 40 साल की रिकार्ड-तोड़ महंगाई से जूझ रहा है तो चीन 40 साल की सबसे कम आर्थिक विकास की मंदी से परेशान है। यूरोप के अधिकांश देशों में मंदी और महंगाई दोनों से वहां की जनता परेशान है। ऐसी विषम तथा विशद परिस्थितियों में भारत महंगाई पर नियंत्रण रखते हुए विश्व की सबसे तेज रफ़्तार से 6.8 प्रतिशत की दर से आर्थिक उन्नति कर रहा है और आने वाले साल 2023-24 में भी आर्थिक विकास दर 6.5 के आसपास रहने की उम्मीद है। यह इस बात का संकेत है कि भारत की आर्थिक नीतियाँ एवं उनका सही ढंग से क्रियान्वयन हो रहा है। 2011-12 की तुलना में जब कृषि क्षेत्र हमारी राष्ट्रीय आय का सिर्फ़ 16.6 प्रतिशत हिस्सा था वह 2021-22 में बढ़कर 20.19 प्रतिशत हो गया है। यह इस बात का द्योतक है कि हमारे किसानों की आय में इज़ाफ़ा हुआ है। 2014 की तुलना में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 2022 में दोगुनी यानि
1.97 लाख हुई है यह भी आर्थिक विकास में सबका सहभागी होने का परिचायक है। पिछले 8-9 वर्षों में हमारा देश विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था की दृष्टि से दसवें पायदान से उठकर पाँचवे स्थान पर पहुँचा है तो यह भी प्रत्येक भारतीय के लिये गर्व की बात है। अगले 25 वर्ष देश की आज़ादी के अमृत-काल के रूप में मनाये जा रहे हैं और 2047 में जब 15 अगस्त को लाल क़िले पर झंडा फहराया जायेगा, उस समय भारत सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था में प्रथम स्थान पर होगा, इस बात के संकेत हमें इस बजट में देखने को मिलते हैं। 10 लाख करोड़ के पूँजीगत खर्च का आवंटन जो कि पिछले वर्ष के 7.5 लाख करोड़ की तुलना में 33.33 प्रतिशत ज़्यादा है। रेल के भी पूँजीगत खर्च के लिये 2.4 लाख करोड़ का प्रावधान है। किसान ऋण 20 लाख करोड़ का होगा, ग़रीबों के लिये मुफ़्त में अनाज वितरण की व्यवस्था जो कोविड कल में चालू कीगई थी और उसे लगभग ढाई वर्ष चलाने के बाद अगले एक वर्ष तक चलाने के लिये 2 लाख करोड़ का प्रावधान इस बजट में किया गया है। प्रधानमंत्री आवास-योजना के लिये भी बजट में 79000 करोड़ रुपये आवंटित 66 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है जो कि समाज में आर्थिक विषमता को दूर करने में मददगार सिद्ध होगा। यह भी उस परिस्थिति में जब कि आर्थिक घाटे की दर में पिछले वर्ष 6.4 प्रतिशत की तुलना में 5.9 की गिरावट के साथ विकास दर को 6.5 पर रखने की योजना बनाई गई है। यहाँ इस बात को समझ लेना उपयुक्त होगा की विश्व-स्तर पर कच्चे तेल के मूल्यों में अगर अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है और यह क़ीमत 100 डालर प्रति बेरल तक होने की अवस्था में विकास दर में कुछ परिवर्तन हो सकता है। रुस-यूक्रेन युद्ध तथा अन्य भौगोलिक-राजनैतिक कारण अनिश्चितता के कारण अभी भी बने हुए हैं। भारत जी-20 देशों का नेतृत्व कर रहा है और आशानुकूल विश्व अर्थव्यवस्था के वर्तमान ख़ामियों को दूर कर एक लोकतांत्रिक और बंधुत्व पर आधारित परस्पर सहयोग के द्वारा विकास की नई अवधारणा बनेगी, इसका हम सभी को विश्वास है।
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