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"पड़ोसी पहले और सागर दृष्टिकोण" वाली नीति को तवज्जो

पाकिस्तान को छोड़ अन्य पड़ोसियों को शपथ समारोह में आमंत्रित किया जाना साफ संदेश है कि नरेन्द्र मोदी उदार तो हैं, लेकिन आतंकवाद की सरपरस्ती करने वाले देश के प्रति कठोर भी हैं। - शिवनंदन लाल

 

नरेंद्र मोदी ने जवाहरलाल नेहरू की बराबरी करते हुए तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। इस बार भाजपा की सरकार राजग गठबंधन पर निर्भर रहेगी क्योंकि भाजपा स्पष्ट बहुमत के 272 के आंकड़े से बहुत पीछे रह गई है। हालांकि शपथ के साथ ही मोदी ने न केवल समझौतावादी जनादेश स्वीकार किया बल्कि पड़ोसी देशों के राष्ट्र प्रमुखों को शपथ के अवसर पर आमंत्रित कर उनके साथ मधुर संबंध बनाए रखने का उदार संदेश भी दे दिया है। 

गणतंत्र के इस समारोह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद्र जगननाथ, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जु, श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, सेशेल्स के उपराष्ट्रपति अहमद अफीफ, नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ’प्रचंड’ और भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे शामिल हुए। भारत की ओर से यह पहल ’पड़ोसी पहले और सागर दृष्टिकोण’ की नीतियों को कारगर बनाने की दृष्टि से की गई है। साफ है, पड़ोसी और समुद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में सर्वोच्च प्राथमिकता में रहेंगे। 2014 में मोदी ने सार्क यानी दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के देशों और 2019 में बिम्सटेक यानी बंगाल की खाड़ी की पहल से जुड़े देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया था। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे देशों के बीच परस्पर आर्थिक सहयोग बढ़ाना है। इन देशों में भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं। इन देशों में भारत क्षेत्रफल, आबादी और अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सबसे बड़ा देश है। दस साल पहले मनमोहन सिंह की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व में 11वां स्थान था, जो मोदी के 10 साला कार्यकाल में 3.70 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के आकार के साथ विश्व में पांचवें स्थान पर है। अर्थव्यवस्था के जानकार उम्मीद जता रहे हैं कि 2026 में भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मन की आर्थिकी से आगे निकल कर वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर होगी और 2027 में दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था।

भारत ने उदारता दिखाते हुए मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जु को आमंत्रित किया जबकि 2023 में जबसे मोइज्जु मालदीव के राष्ट्र प्रमुख बने हैं तभी से मालदीव और भारत के संबंधों में तनाव बना हुआ है। अपने चुनाव अभियान के दौरान मोइज्जु ने भारत के 88 सैनिकों को देश से निकालने का आह्वान किया था। किंतु अब मोइज्जू ने कहा है कि उनके लिए इस ऐतिहासिक अवसर में भागीदारी सम्मान की बात है। उम्मीद है कि अब दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध सकारात्मक दिशा में बढ़ेंगे। दक्षेस मसलन हमारे वे पड़ोसी देश जो हमारी जमीनी अथवा समुद्री सीमा से जुड़े हैं। इन देशों की संख्या 8 है। ये देश हैं पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका। हालांकि चीन भी हमारी सीमा से जुड़ा है, लेकिन दक्षेस का सदस्य नहीं है। इस समूह में यदि मॉरिशस, ईरान, म्यांमार और मध्य एशिया के पांच गणराज्य भी शामिल हो जाएं तो इसकी ताकत वैश्विक मुद्दों में हस्तक्षेप के लायक बन सकती है। दक्षेस देश दुनिया के तीन फीसद भूगोल में फैले हैं। दुनिया की मौजूदा आबादी की 21 प्रतिशत जनसंख्या इन्हीं देशों में है। इन देशों में कुल क्षेत्रफल और जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 70 फीसद से ज्यादा है। 80 फीसद आर्थिकी पर भी भारत काबिज है। हालांकि वैश्विक कारोबार की तुलना में इन देशों का परस्पर कुल व्यापार 5 फीसद ही है। इस लिहाज से ये देश न तो व्यापार के क्षेत्र में सफल रहे और न ही शांति बरकरार रखने में कामयाब हुए। इस नाते इस संगठन का ज्यादा महत्त्व नहीं रह गया है। पाक निर्यातित आतंक कालांतर में युद्ध का कारण बनता है तो दक्षेस का भंग होना तय है। मोदी न केवल दक्षेस, बल्कि आसियान देशों के बीच मुक्त व्यापार के पक्षधर हैं लेकिन पाक बाधाएं पैदा करने से बाज नहीं आता।

मोदी आतंकवाद के प्रखर विरोधी रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ उनकी मुखरता के चलते आज भारत समेत दुनिया में आतंकवाद कमजोर हुआ है। गौरतलब है कि दक्षेस के गठन में पाकिस्तान की अहम भूमिका थी। पाक के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने इस परिकल्पना को अंजाम तक पहुंचाया था। 1981 में भारत समेत अन्य दक्षेस देशों के विदेश सचिवों की पहली बैठक बांग्लादेश में हुई थी। बाद में 1983 में विदेश मंत्रियों की बैठक नई दिल्ली में हुई और इसी बैठक में ’दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन’ वजूद में आया किंतु अब पाकिस्तान चीन के कर्ज में फंसकर उसके इशारों पर नाचने को मजबूर है। भारत-पाक के संबंध आजादी के बाद से ही नरम-गरम बने रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के 78,000 वर्ग किमी. भूभाग पर पाकिस्तान का अतिक्रमण है। नियंत्रण रेखा के उल्लंघन और सीमा पार से गोलीबारी और आतंकी गतिविधियां जारी हैं। बार-बार इन गतिविधियों पर अंकुश लगाने की मांगों को पाकिस्तान अनदेखा करता रहा ने दिलचस्पी नहीं ले रहा। अतएव पाकिस्तान को छोड़ अन्य पड़ोसियों को शपथ समारोह में आमंत्रित किया जाना साफ संदेश है कि नरेन्द्र मोदी उदार तो हैं, लेकिन आतंकवाद की सरपरस्ती करने वाले देश के प्रति कठोर भी हैं।

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