मोदी सरकार में विज्ञान की प्रगति
पिछले दस वर्षों में भारत में नवाचार और उद्यमी संस्कृति की एक मज़बूत नींव पड़ी है। - डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह
पिछले दिनों प्रकाशित हुए लेखों के माध्यम से ऐसा स्थापित करने का प्रयास किया गया कि मोदी सरकार के दौर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत में विशेष प्रगति नहीं हुई, और वर्ष 2024 के बाद मोदी सरकार बनने की स्थिति में भारत में विज्ञान की स्थिति और कमजोर होगी। इन विद्वानों की माने तो विज्ञान के अलावा पिछले 10 वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर, नगरीकरण, डिजिटाइजेशन, वित्तीय और कानून सुधार, युवा और महिला विकास, खेल सुधार, तकनीकी शिक्षा, एंटरप्रेन्योरशिप और रक्षा उत्पादन क्षेत्र में हुए बड़े नीतिगत सुधारों में भी इन्हें मोदी सरकार का कोई योगदान नज़र नहीं आता।
हालांकि इन सबके उलट अगर हम तथ्यात्मक अवलोकन करें तो पाएंगे कि शिक्षा और तकनीक को केंद्र में रखा। पिछले 10 वर्षों में विज्ञान की दिशा में कई बड़े बदलाव हुए हैं। यह मोदी सरकार के पिछले दस वर्षों में था कि यूजीसी द्वारा विज्ञान और मानविकी में अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए दी जाने वाली जेआरएफ और एसआरफ फेलोशिप की राशि को 2014 और 2019 में दो बार बढ़ाया गया था।
एस.एण्ड.टी. कार्यक्रमों के लिए दीर्घकालिक और टिकाऊ वित्तीय प्रतिबद्धता आवश्यक है क्योंकि अधिकांश परियोजनाएं लंबी अवधि की होती हैं। मोदी सरकार की अवधि में सकल जीडीपी का अनुसंधान एवं विकास व्यय 2010-11 में रू. 60,000 करोड़ से दोगुना होकर पिछले वर्ष रू. 1.2 लाख करोड़ हो गया है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) का कुल व्यय 2013-14 में लगभग रू. 3,200 करोड़ से बढ़कर 2021-22 में रू. 6,700 करोड़ हो गया है। ये सब विज्ञान प्रसार और शोध को बढ़ावा देने के लिए बढे हुए वित्तीय सहयोग के उदाहरण हैं।
पिछले दशक में ही, कोविड संकट में भारत सरकार द्वारा घोषित 900 करोड़ रुपये के ’मिशन कोविड सुरक्षा’ के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने चार टीके वितरित किए। इसरो ने 424 विदेशी उपग्रहों में से 389 का प्रभावशाली प्रक्षेपण किया है, भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना झंडा फहराने वाला पहला देश बन गया है और सफलतापूर्वक आदित्य मिशन लॉन्च किया है जो अंतरिक्ष नवाचार में भारत की बढ़ती हुई शक्ति को दर्शाता है।
भारत ने ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआईआई) की अपनी वैश्विक रैंकिग में दुनिया की 130 अर्थव्यवस्थाओं के बीच वर्ष 2015 में 81वें से वर्ष 2022 में 40वें स्थान पर भारी छलांग लगाई। हाल में प्रस्तुत हुए अंतरिम बजट में, भारत की नयी उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास के लिए 1 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, 2023 में राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) विधेयक की शुरूआत हुई और अगले पांच वर्षों में विज्ञान, शोध और नवाचार के लिए 50,000 करोड़ के अपव्यय की दूरगामी रूपरेखा तैयार की गयी। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार, “एनआरएफ एक दूरगामी लक्ष्य को लेकर की गयी परिकल्पना है जो कि 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त करेगा“।
हाल के वर्षों में भारत की पेटेंट फाइलिंग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2022 में, इसमें 22 प्रतिशत की सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई। रेजिडेंट पेटेंट दाखिल करने के मामले में भारत अब विश्व में सातवें स्थान पर है। स्टार्टअप्स की संख्या (77,000) और यूनिकॉर्न की संख्या (107) के मामले में भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है। भारत दुनिया में प्रौद्योगिकी लेनदेन के लिए सबसे आकर्षक निवेश स्थलों में तीसरे स्थान पर है। मोदी सरकार के तहत भारत ने वित्तीय डिजिटलीकरण की दिशा में बड़ी छलांग लगाई है। ये सब टेक्निक और विज्ञान प्रयोग का ही प्रभाव है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वन में भारतीय शिक्षा व्यवस्था में कई नए सुधार और प्रयोग किये जा रहे हैं। साथ ही एक ऐसे अकादमिक इकोसिस्टम के निर्माण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता है जहाँ नए-नए व्यवहार और प्रयोगों के द्वारा नवाचार तथा अनुसंधान को बढ़वा मिले। यह नीति पारंपरिक रूप से रटकर सीखने की पद्धति से हटकर एक ऐसे शैक्षिक दृष्टिकोण पर बल देती है, जो रचनात्मकता, नवाचार, आलोचनात्मक सोच और अंतःविषय शिक्षा को बढ़ावा देता है। अटल इनोवेशन मिशन (एआईएम), इंस्टीट्यूट इनोवेशन सेल (आईआईसी) और प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप (पीएमआरएफ) जैसे कुछ प्रमुख कार्यक्रम देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में नवाचार और अनुसंधान की संस्कृति को स्थापित करने के लिए सरकार के एक ठोस प्रयास का प्रतिनिधित्व करती हैं।
अटल इनोवेशन मिशन मोदी सरकार की एक बड़ी लोक नीति है, जिसका लक्ष्य स्कूलों, विश्वविद्यालयों, उद्योगों और सरकारों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना है। इसके तहत स्कूलों में टिंकरिंग लैब्स, और देश भर में इनोवेशन सेंटरों (स्टार्टअप कॉर्नर) का एक नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है। इससे छात्रों में वैज्ञानिक स्वभाव और समस्या-समाधान कौशल विकसित करने में मदद मिलती है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इसकी स्थापना के बाद से, स्कूलों में 10,000 से अधिक टिंकरिंग प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं।
2047 तक आने वाला समय एक ऐसा काल है जो एक मजबूत, आत्मनिर्भर देश के निर्माण के हमारे सपने को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें वैज्ञानिक समुदाय विशेष रूप से हमारे युवा, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। केंद्र सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय और गैर सरकारी संगठन फाउंडेशन फॉर एडवांसिंग साइंस एंड टेक्नोलॉजी (फास्ट इंडिया) की ओर से विज्ञान का एक दशकः आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रौद्योगिकी पैनोरमा शीर्षक से तैयार की गई। रिपोर्ट में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे, रक्षा, ऊर्जा क्षेत्र और भारी उद्योगों जैसे क्षेत्रों में भारत के निरंतर प्रयासों पर प्रकाश डाला गया है। पीएम मोदी ने कहा है कि सरकार ने युवाओं में वैज्ञानिक सोच पैदा करने के साथ-साथ जिज्ञासा-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा क्षेत्र में दूरगामी सुधार भी लागू किए हैं। प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद ने कहा कि रिपोर्ट में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों जैसे क्षमता निर्माण, ऊर्जा, अन्वेषण, सार्वजनिक सेवा, कृषि, पशु धन और जैव प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य में प्रयासों की जांच की गई।
आज हमें कृत्रिम मेधा, गहरे समुद्र और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में निवेश करना हो, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग हो, महामारी के दौरान टीके का विकास या नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार की प्रतिबद्धता हो, ये सभी प्रयास आत्मनिर्भरता की दिशा में हमारी निरंतर यात्रा को प्रदर्शित करते हैं। भारत के वैज्ञानिकों ने विविध क्षेत्रों में अभूतपूर्व अनुसंधान किया है, जबकि इसका प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र वैश्विक चुनौतियों के लिए अभिनव समाधान प्रदान करता है।
ये जरूर है कि आज भारतीय उद्योग द्वारा औसत अनुसंधान एवं विकास खर्च अभी भी विकसित देशों की तुलना में कम है और विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिग और गणित (एसटीईएम) में भारतीय महिलाओं की भागीदारी में महत्वपूर्ण अंतर है। लेकिन पिछले दस वर्षों में भारत में नवाचार और उद्यमी संस्कृति की एक मज़बूत नींव पड़ी है, जो इस ज्ञान-सदी में विकसित भारत के हमारे लक्ष्य की ओर एक बड़ा कदम है। मोदी सरकार निश्चय ही इसके लिए बधाई की पात्र है।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं।)
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