swadeshi jagran manch logo

नीतियों की निरंतरता से ही लगेंगे अर्थव्यवस्था को पंख

केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में तीसरी बार सरकार बनने के बाद अपने पहले 100 दिन के लक्ष्यों को सामने रखकर मिशन मोड में काम कर रही है तथा यह भी बताया है कि सरकार अपनी विकास की नीतियों को निरंतरता के साथ आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। - अनिल तिवारी

 

23 जुलाई 2024 को संसद में आम बजट पेश होने वाला है। हर बार की तरह इस बार भी केंद्रीय बजट से आम और खास सभी को बड़ी उम्मीदें हैं। खजाना मंत्री निर्मला सीतारमण प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहले बजट पेश करेंगी। हाल के बरसों में जिस तरह सरकार ने लघु, सूक्ष्म और मझौले उद्योगों के लिए कई तरह की योजनाएं शुरू की है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि बजट में सरकार रोजगार मुहैया करने की दृष्टि से छोटे और मझोली उद्योगों के लिए कुछ बड़ी सौगातो का ऐलान कर सकती है।

दरअसल भारत में सकल घरेलू विकास दर में एमएसएमई का करीब 30 प्रतिशत योगदान है। भारी संख्या में शुरू हुए स्टार्टअप्स भी इसी क्षेत्र का हिस्सा है। ऐसे में वर्ष 2024-25 के पूर्ण बजट में इस सेक्टर पर खास फोकस रहने की बात की जा रही है, क्योंकि बेरोजगारी की चुनौती से निपटने में यह सेक्टर काफी मदद कर सकते हैं। इस बीच चेंबर ऑफ ट्रेड इंडस्ट्री ने सरकार के समक्ष अपनी दस सूत्री मांगों से संबंधित एक पत्र भेजकर इनकम टैक्स का नाम बदलने से लेकर मिडिल क्लास और छोटे व्यापारियों को राहत देने समेत अपनी प्रमुख मांगे गिनाई है। इंडस्ट्री ने सस्ती ब्याज दर पर लोन मुहैया कराने,जीएसटी की नई एमनेस्टी स्कीम का लाभ हानि उन व्यापारियों को भी दिए जाने जो पहले से ही टैक्स ब्याज और पेनाल्टी जमा कर चुके हैं, मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम में छूट देने, जीएसटी की तरह इनकम टैक्स में भी हाइब्रिड सिस्टम होने, जरूरत की चीजों पर जीएसटी की दर तर्कसंगत बनाने तथा व्यापारियों और उद्यमियों के लिए ट्रेड एंड इंडस्ट्री डेवलपमेंट बोर्ड गठन करने की मांग की है।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार का यह लगातार 11वां बजट होगा, लेकिन इस बार सरकार के सामने अलग तरह की चुनौती है। पहली बात यह कि इस बार इन 11 सालों में पहली बार भाजपा अकेले अपने दम पर सरकार में नहीं है। दूसरी बात यह कि इस बार सहयोगी दलों का सरकार पर अलग तरह का दबाव है। तीसरी बात यह कि जल्द ही महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं और सरकार पर दबाव लोकलुभावन बजट पेश करने का भी है। सबसे बड़ी चुनौती यह कि सीमित विकल्प के बीच सरकार किस तबके पर फोकस करे। बजट से पहले ग्रामीण से लेकर शहरी तबकों ने अपनी इच्छा सूची दे दी है। ऐसे में 23 जुलाई को पेश होने वाला बजट न सिर्फ सरकार का वित्तीय लेखा- जोखा होगा, बल्कि आगे की राजनीतिक दिशा का ब्लू प्रिंट भी उससे मिलेगा।

इसीलिए, बजट पर इस बार सबसे अधिक नजर मिडल क्लास की लगी है। वह बजट में अपने लिए राहत का पिटारा देखना चाहता है। खासकर टैक्स के मोर्चे पर सरकार के सामने रियायत देने का दबाव बहुत बढ़ गया है। 2024 आम चुनाव में भले भाजपा की सीटें कम हुई, लेकिन चुनाव बाद आए आंकड़ों ने साबित किया कि मिडल क्लास भाजपा के साथ मजबूती से जुड़ा रहा। अब अगर चुनाव बाद सोशल मीडिया पर मिडल क्लास लोगों के बहस-मुबाहिसे देखें तो उनका तर्क है कि पिछले कुछ सालों से भाजपा ने उनका जितना सहयोग लिया, उस मुकाबले उतनी राहत नहीं दी, जितनी की अपेक्षा थी। इसका अंदाजा सरकार को भी है। लगातार बढ़ते कर संग्रह की चर्चा भी मिडल क्लास को नागवार गुजरी। यही वजह है कि जीएसटी कलेक्शन के आंकड़ों को नियमित रूप से सार्वजनिक करने से अब मोदी सरकार परहेज करने लगी है। साथ ही, संघ ने भी भाजपा को फीडबैक दिया कि टैक्स  के मोर्चे पर वह मिडल क्लास को राहत दे, नहीं तो अब उसके सब्र का पैमाना टूट सकता है।

दरअसल, मिडल क्लास तबका नैरेटिव को बनाने में अहम भूमिका निभाता है, उसी तरह बिगाड़ने में भी। सरकार को इसका अंदाजा है। लेकिन चिंता का बस यही एक कारण नहीं है। आम चुनाव में इस बार बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में झटका लगा। कहा गया कि महंगाई, किसानों की दिक्कतों आदि के कारण लोगों में खामोश नाराजगी थी। चुनौती युवाओं के लिए रोजगार की भी है। विपक्ष ने हाल में रोजगार को सफलतापूर्वक बड़ा मुद्दा बना दिया। हालांकि अलग-अलग आंकड़ों के आधार पर रोजगार के मोर्चे पर सरकार अपनी विफलता को खारिज करती रही है, लेकिन उन्हें अच्छी तरह से पता है कि रोजगार के क्षेत्र में उसे तत्काल बड़े कदम उठाने ही होंगे। चुनाव के बाद आए आंकड़े इस बात का संकेत देते हैं कि 18 से 25 साल के युवाओं के बीच बीजेपी का दबदबा कम हुआ है। संख्या और प्रभाव के लिहाज से सबसे बड़ा तबका यही है और 2014 से नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली बीजेपी की लगातार मजबूती के पीछे इसी तबके के समर्थन का बड़ा योगदान था। ऐसे में केंद्र सरकार को इस बार बजट में इन सभी को यह संदेश देने की चुनौती है कि वह उनके हित और अपेक्षाओं के साथ खड़ी है। भले यह एनडीए सरकार के तीसरे टर्म का पहला ही बजट हो, लेकिन ऐसे संजीदा समय में बीजेपी कहीं भी अपनी राजनीतिक पकड़ को और कमजोर नहीं होने देगी, जिससे उसकी दिक्कतें बढ़ें।

अगर केंद्र सरकार बजट में सभी वर्गों को साधने के लिए लोक-लुभावन बजट पेश करती है तो उसके सामने बड़ा सवाल आएगा कि रिफॉर्म का क्या होगा? जानकारों के अनुसार देश की इकॉनमी अभी रिकवरी स्टेज में है, ऐसे में बड़े लोक-लुभावन बजट की चुनौतियों को झेलना आसान नहीं होगा। वैसे भी नरेंद्र मोदी शुरू से लोक-लुभावन बजट की परिकल्पना के खिलाफ रहे हैं। उन्होंने पूर्व में रेवड़ी संस्कृति पर भी सवाल उठाया था। लेकिन जिस तरह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मध्य प्रदेश में और अब महाराष्ट्र में लोक-लुभावनी आर्थिक मदद वाली योजनाओं का एलान हुआ, उससे संकेत गया कि राजनीतिक मजबूरी के सामने भाजपा अब समझौता कर सकती है। 

वैश्विक हालात से लेकर कई मोर्चों पर पहले से ही अनिश्चितता है। सरकार इन चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। इसके अलावा उद्योग जगत की भी अपनी आकांक्षाएं है। ऐसे में सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी कि वहां कोई प्रतिकूल संदेश जाए और बाजार को रेड सिग्नल मिले।

बहरहाल लगातार कमजोर हो रहे डॉलर और विश्व बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमतों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनुकूल स्थिति बनती हुई दिख रही है। लगातार बढ़ते प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर, मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण, राजकोषीय घाटे पर काबू, चालू खाता घाटा और रुपए की बढ़ती स्वीकार्यता जैसे मानकों पर भारत इस समय सच्चे अर्थों में “आर्थिक अमृत काल“ का आनंद ले रहा है। ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता क्रय शक्ति बढ़ी है, शेयर बाजार में सेंसेक्स 81 हजार के पार पहुंच चुका है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी कई विश्वसनीय संस्थाओं ने आने वाले वर्षों में भारत की विकास दर को लगातार बढ़ते हुए रेखांकित किया है। सरकार बुनियादी ढांचा पर विशेष जोर देने की अपनी पूर्व की नीति पर अब तक अटल दिखाई दे रही है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में तीसरी बार सरकार बनने के बाद अपने पहले 100 दिन के लक्ष्यों को सामने रखकर मिशन मोड में काम कर रही है तथा यह भी बताया है कि सरकार अपनी विकास की नीतियों को निरंतरता के साथ आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। सड़क, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे, जल मार्ग आदि के क्षेत्र में बुनियादी ढांचों को बढ़ावा देने से निजी पूंजी व्यय में भारी वृद्धि की उम्मीद है।      

Share This

Click to Subscribe