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निर्यात बढ़ाने से ही बनेगी बात

वर्तमान आर्थिक परिदृश्य से यह स्पष्ट होता है कि अगर सरकार आसियान देशों में निर्यात की नई रणनीति बनाती है तो निश्चित रूप से देश को आर्थिक रूप से एक और नई ऊंचाई प्राप्त होगी। - शिवनंदन लाल

 

वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक विशेष किस्म की अनिश्चिता और अपेक्षा के विपरीत ठहराव के बावजूद भारत में बुनियादी ढांचे में बढ़ते निवेश उपभोक्ताओं की बढ़ती क्रय शक्ति और मध्यम वर्ग के विस्तार से भारतीय अर्थव्यवस्था को मजे की मजबूती मिल रही है। केंद्र में सत्तारूढ़ राजग गठबंधन सरकार वैश्विक व्यापार की चुनौतियों के बीच भारत से निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने के लक्ष्य को सामने रखकर धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। हाल ही में नई दिल्ली में बंगाल की खाड़ी के आसपास स्थित देशों का संगठन (बिम्सटेक) की गतिविधियों को गति के साथ बढ़ाने के लिए भारत ने मजबूत पहल शुरू की है।

भारत सरकार का मानना है कि भारत के लिए बिम्सटेक के देश बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड के साथ द्विपक्षीय व्यापार और आपसी सहयोग बढ़ाने की पहल  ’पड़ोसी प्रथम’ एक्ट ईस्ट तथा सागर नीति का ही हिस्सा है। भारत का सदैव से मानना रहा है कि पड़ोसी देशों को साथ लेकर की जाने वाली आर्थिक गतिविधियां अगर ठीक रास्ते पर चल रही हैं तो उसके दूरगामी असर दूर के देशों पर भी सकारात्मक पड़ता है। पूर्व में भी सरकार की यह नीति हर दृष्टिकोण से मुफीद साबित हुई है।

इस क्रम में भारत ने रूस सहित मित्र देशों और विभिन्न विकसित देशों के साथ द्विपक्षी वार्ताओं से कारोबार बढ़ाने की नई कवायद भी प्रारंभ की है। हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रूस और आस्ट्रिया के दौरे के दौरान द्विपक्षीय वार्ताओं से विदेश व्यापार की नई संभावनाएं तलाशने तथा उन्हें आगे बढ़ाने पर जोर दिया है।प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच वार्ता के बाद जारी हुए संयुक्त बयान में कहा गया है कि भारत और रूस में द्विपक्षीय कारोबार को 2030 तक 100 अरब डालर तक बढ़ाने, व्यापार में संतुलन लाने, गैर शुल्क व्यापार बाधाओ को दूर करने और यूरेशियन आर्थिक संघ तथा भारत के बीच मुक्त व्यापार क्षेत्र की संभावनाओं को तलाशने का काम प्राथमिकता के आधार पर ऊपर रखा गया है। दोनों देशों ने राष्ट्रीय मुद्रा का इस्तेमाल कर एक द्विपक्षीय निपटान प्रणाली स्थापित करने और पारस्परिक निपटान प्रक्रिया में डिजिटल वित्तीय उपकरणों को लाने की योजना बनाने की भी बात कही है।

वही ऑस्ट्रिया के चांसलर कार्ल नेहमर के साथ द्विपक्षी वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों देशों के आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए संबंधों को रणनीतिक दिशा दी जाएगी। बुनियादी ढांचा विकास, इनोवेशन, नवीकरणीय ऊर्जा, हाइड्रोजन, जल एवं अपशिष्ट प्रबंधन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम जैसे क्षेत्रों में एक दूसरे के सामर्थ्य को जोड़ने का काम जल्द ही शुरू किया जाएगा। मालूम हो कि वर्ष 2023 में दोनों देशों के बीच लगभग तीन अरब रुपए का द्विपक्षीय व्यापार हुआ है। ऑस्ट्रिया के लिए भारत यूरोपीय संघ के बाहर इसके सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदारों में से एक है।

बताते चलें कि ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति को सर आंखों पर बिठाते हुए केंद्र सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री मोदी ने नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों के राष्ट्रीय प्रमुखों को बुलाया था। सरकार की मजबूत पहल का नतीजा ही है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना तथा भारत के बीच द्विपक्षीय वार्ता के बाद तीस्ता नदी के जल प्रबंधन समुद्री अर्थव्यवस्था और डिजिटल सेक्टर सहित 10 अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इसी तरह श्रीलंका के साथ संबंध मजबूत करने के लिए कोलंबो में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका के शीर्ष नेतृत्व के साथ बातचीत की और भारत की ओर से दिए गए 60 लाख अमेरिकी डॉलर के अनुदान से निर्मित समुद्री बचाव समन्वय केंद्र का उद्घाटन भी किया। वर्ष 2022 में जब श्रीलंका अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा था तब भारत ने 3.30 अरब डॉलर की मदद देकर श्रीलंका को फौरी तौर पर आर्थिक संकट से उबरा था। यह भी महत्वपूर्ण है कि हाल के जी-7 के शिखर सम्मेलन में विशेष आमंत्रित देश भारत की अहमियत दिखाई दी। भारत के लिए सबसे ठोस लाभ यह रहा कि जी-7 के देशों में यह सहमति बनी कि प्रतिबद्धता के साथ भारत पश्चिम एशिया यूरोप आर्थिक गलियारे को बढ़ावा दिया जाएगा। इस गलियारे के निर्माण की घोषणा पिछले वर्ष भारत में  जी-20 शिखर बैठक के समय की गई थी।

हालांकि भारत में असमानता और व्यापार घाटे संबंधी चुनौतियां अब भी बरकरार हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की बेहतर आर्थिक की गतिविधियों को प्रमुखता से दर्ज करते हुए वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर के अनुमान को पहले से बढ़ाते हुए 6.8 से 7 प्रतिशत तक का कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा दर्ज की गई अनुमानित वृद्धि देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती के प्रति आश्वस्त करता है। बीते अप्रैल महीने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के विकास की दर को 6.8 प्रतिशत तक रहने की बात कही थी लेकिन अब उसका दावा है कि अगले वर्ष यानी 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती है। निश्चित रूप से यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत उत्साहजनक है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भी पिछले महीने कहा था कि भारत संरचनात्मक बदलाव से गुजरते हुए आठ प्रतिशत की वृद्धि दर की ओर बढ़ रहा है।

दरअसल भारत में खासकर गांव में रहने वाले लोगों के लगातार बढ़ते निजी उपभोग को अर्थव्यवस्था की गति के लिए सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है जिसकी पुष्टि केंद्रीय सांख्यिकी व कार्यक्रम मंत्रालय के हालिया सर्वेक्षण से भी होती है।सर्वेक्षण में बताया गया है कि पिछले 11 वर्षों में ग्रामीण परिवारों की खपत में वृद्धि हुई है यानी 2011-12 में गांव में जो प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 1430 रुपए था वह वर्ष 2022-23 में करीब 3773 रुपए हो गया है।

एक ऐसे समय में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2023 के 3.3 प्रतिशत की तुलना में 0.1 प्रतिशत सुस्त रहने की बात की जा रही हो तब भारत का 2025 तक दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्था बने रहना एक सकारात्मक संकेत है। भारत की मजबूत आर्थिक नीतियों और सुधारां की दिशा में की गई पहल के कारण यह गुलाबी तस्वीर उभरी है। वित्तीय, बैंकिंग क्षेत्र में किए गए सुधारों के अलावा उद्यमिता और डिजिटल अर्थव्यवस्था को मिल रहे प्रोत्साहन से देश के विकास की नींव मजबूत हो रही है।

वर्तमान आर्थिक परिदृश्य से यह स्पष्ट होता है कि अगर सरकार आसियान देशों में निर्यात की नई रणनीति बनाती है तो निश्चित रूप से देश को आर्थिक रूप से एक और नई ऊंचाई प्राप्त होगी। भारत को ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, इजरायल, गल्फ देशों और यूरोपीय संघ के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते को जल्दी से जल्दी अंतिम रूप देने की कार्य नीति पर आगे बढ़ना चाहिए। जी-20 शिखर बैठक के दौरान जिन 55 देश वाले अफ्रीकी संगठन को भारत में जी-20 की स्थाई सदस्यता दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी, उन देशों में भी भारत को अपने निर्यात बढ़ाने के लिए ठोस पहल की शुरुआत करनी चाहिए। सरकार व्यापार घाटा कम करने को लेकर सकारात्मक पहल कर रही है। ऐसे में अगर विभिन्न देशों में निर्यात की मात्रा बढ़ती है तो इसका फायदा सीधे-सीधे भारत की अर्थव्यवस्था को होगा। 

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