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अनिल अंबानी के पतन की कहानी

समय सदा एक जैसा नहीं रहता। भविष्य निस्संदेह अज्ञात हो सकता है परंतु भाग्य रेखा निरंतर संघर्ष से परिवर्तित की जा सकती है, इसमें ही कोई संदेह नहीं है। - विनोद जौहरी

 

विषय अनिल अंबानी ही नहीं है बल्कि लाखों समृद्धशाली औद्योगिक घराने भी है जो दिवालिया हो गये और कालांतर में जिनका कोई नामलेवा भी नहीं बचा और उनकी हवेलियों के खंडहर उनके अर्श से फर्श तक गिरने की कहानी तो कह रहे हैं। परंतु उनकी केस स्टडी बताने और लिखने वाला भी कोई नहीं है। अनिल अंबानी के विषय में कुछ बात करने से पहले इसी विमर्श के लिए हृदय की वेदना को भी व्यक्त कर लिया जाये। 

ऐसे बड़े करदाताओं और पूर्व समृद्ध औद्योगिक घरानों के पतन किसी अर्थशास्त्री के शोध का विषय भी नहीं है और वित्त मंत्रालय से लेकर व्यापारिक एवं औद्योगिक संस्थानों जैसे फिक्की, सीईआई, एसोचैम भी इस विषय में संवेदन शून्य हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार को इनकी सूचना नहीं होती क्योंकि आयकर विभाग, राज्यों के उद्योग विभाग, केंद्र सरकार के कंपनी मंत्रालय, उत्पाद शुल्क (वर्तमान में जीएसटीएन) विभागों आदि को पता होता है कि अमुक व्यापारी की विवरणियां और उद्योग व्यापार बंद हो गये हैं परंतु कर योग्यता समाप्त होने पर उनकी कोई सार्थकता नहीं रह जाती। कुछ न कुछ गलतियां, अतिरिक्त महत्वाकांक्षा, असामयिक निर्णय, पूंजी की कठिनाइयां, ऋण का आधिक्य, धोखा, आपसी वैमनस्यता, भ्रष्टाचार, पारिवारिक प्रतिकूल परिस्थितियां इनके पतन का कारण रही होंगी। इससे दयनीय स्थिति यह है कि ऐसे करदाताओं को दंड के सभी प्रावधानों को भुगतने को विवश होना पड़ता है। आज स्थिति यह है कि सभी सरकारी विभागों की कार्य पद्धति टैक्नोलॉजी आधारित हो गयी हैं इसलिए सरकार और जनता के बीच सीधा संवाद भी समाप्त हो गया। निस्संदेह सरकारी सेवाओं में टैक्नोलॉजी के कारण भ्रष्टाचार कम हुआ है और सेवाएं त्वरित हो गयी हैं और इसी के साथ जनमानस के धरातल की समस्याओं और कठिनाइयों को समझने और समझाने वाला कोई पोर्टल और माध्यम नहीं है।

आयकर विभाग में 1980 के दशक में सरकारी सेवाओं में अधिकारियों और उद्यमियों एवं व्यापारियों के बीच सीधा संवाद था। अधिकारियों को उद्योग व्यापार की अच्छी समझ थी परंतु कालांतर में केवल आनलाइन आयकर विवरणियों की न्यूनतम जांच भी टैक्नोलॉजी आधारित हो गयी है जिसका लाभ भी करदाताओं को निश्चित रूप से हुआ है। इसी कालखंड में मुझे भी आयकर विभाग में सेवा का अवसर मिला और इंवेस्टीगेशन में कार्यरत रहते हुए उद्योग व्यापार में शिखर पर बैठे उद्यमियों और व्यापारियों से संपर्क हुआ और पतन और बदहाली में पूर्व करोड़पतियों को भी अभाव में जीवन का संघर्ष करते देखा। फिर अधिकारी के रूप में हृदय में यह संवेदना जागृत हुई कि जहां तक हो सके उन उद्यमियों और व्यापारियों से भी संपर्क किया जाये जिनका पतन हो चुका है और वह सब कुछ छोड़कर केवल जीवन का संघर्ष कर रहे हैं। उन पुरानी खंडहर हवेलियों में भी गया जहां टूटी दीवारें भी बात करने को तैयार नहीं हैं। 

किसी भी औद्योगिक क्षेत्र में जायें तो बहुत सी फैक्ट्रियां खंडहर दिखाई दे जाती हैं। एक समृद्ध व्यापारी के पतन से सैकड़ों परिवार प्रभावित होते हैं और उससे संबंधित आपूर्ति शृंखला समाप्त हो जाती है। सरकार दुनिया भर के सर्वे करवाती है परंतु कभी ऐसे पूर्व समृद्धशाली करदाताओं की भी सुध ले ली जाये जो आज जीवन का संघर्ष कर रहे हैं। 

आज धीरूभाई अंबानी के पुत्र अनिल अंबानी के पतन का उदाहरण सामने है। यह अपने आप में एक शोध का विषय है। कुछ दिन पूर्व फाइनेंशियल एक्सप्रेस (अंग्रेजी) में “अनिल अंबानीः बिलियनेयर टर्न्ड बैंकरप्ट“ लेख/ विश्लेषण प्रकाशित हुआ जिसको पढ़कर हृदय में वेदना हुई। ऐसी घटनाएं तो लाखों व्यापारियों के साथ हुई होंगी परंतु सरकारी स्तर पर कोई संवेदना जागृत हुई हो, ऐसा देखने में नहीं आया। 

एक समय में अनिल अंबानी विश्व के छह सबसे बड़े समृद्धशाली व्यक्तियों में गिने जाते थे, वर्ष 2004-06 तक राज्य सभा के सदस्य थे और उनकी संपत्ति उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी से भी अधिक थी। पारिवारिक विभाजन के बाद भी जो व्यापारिक कंपनियां और संपत्तियां उनके अधिकार में आयीं वह भी सबसे अधिक लाभकारी थीं। फिर भी अनिल अंबानी का पतन भाग्य की रेखा से अधिक अतिरेक महत्वाकांक्षा, अदूरदर्शिता पूर्ण विस्तार और व्यापारिक समझौते, सब कुछ जल्दी पाने की ललक ने उनको आज की स्थिति में एक कर्जदार के रूप में लाकर खड़ा कर दिया। वर्ष 2000 में अनिल अंबानी का रिलायंस कम्यूनिकेशंस (आरकॉम), रिलायंस कैपिटल (आरकैप) और रिलायंस इंफ्रा जैसी कंपनियों पर नियंत्रण था। वर्ष 2007 में आरकैप का बाजारी पूंजीकरण (मार्केट कैप) रु. 70,000 करोड़ था जो एचडीएफसी से भी अधिक था। वर्ष 2008 में 42 बिलियन डालर के साथ अनिल अंबानी विश्व के छठे सबसे बड़े समृद्धशाली थे और रिलायंस पावर का सबसे बड़ा आईपीओ आया जो एक मिनट में 70 गुणा सब्सक्राइब हुआ जिसमें रु. 11,500 करोड़ प्राप्त हुआ। परंतु कुछ ही घंटों में शेयर का मूल्य रु. 540 से घटकर रु. 372 रह गया और निवेशकों का अरबों रुपया डूब गया। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका की कंपनी एमटीएन के साथ 2 बिलियन डालर का समझौता रद्द हो गया जिसके सहारे रिलायंस कम्यूनिकेशंस के ऋण के समाप्त होने की योजना थी। इसी के साथ रिलायंस कम्यूनिकेशंस का पतन प्रारंभ हो गया। वर्ष 2019 में रिलायंस कम्यूनिकेशंस के लिए लंदन में दिवालिया होने का केस डाल दिया जिससे तीन चीन की कंपनियों द्वारा दिए गए ऋणों की 680 मिलियन डालर की रिकवरी को रोका जा सके। वर्ष 2019 में एरिक्सन एबी के रु. 550 करोड़ के ऋण वापस न करने की स्थिति में अनिल अंबानी को कारावास की चेतावनी दी। वर्ष 2020 में अनिल अंबानी ने इंग्लैंड की अदालत में अपनी पूंजी समाप्त होने की दलील पर दिवालियापन का केस प्रस्तुत किया। फिर वर्ष 2021 में रिलायंस कैपिटल द्वारा रु. 24000 करोड़ के बांड पर डिफाल्ट पर दिवालियापन का केस प्रस्तुत किया। वर्ष 2024 में उच्चतम न्यायालय ने रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की मेट्रो कंपनी के रु. 8000 करोड़ के आर्बीट्रेशन आदेश को निरस्त कर दिया। सेबी ने ग्रुप कंपनियों के फंड ट्रांसफर की अनियमितताओं को रोकने के उद्देश्य से अनिल अंबानी को सूची बद्ध कंपनियों में निदेशक बनने पर रोक लगा दी। 

अभी हाल ही में उनकी ग्रुप कंपनी रिलायंस होम लोन लिमिटेड में अन्य बकाया ऋणों के भुगतान के लिए धोखाधड़ी से पैसा निकालने के मामले में इस कंपनी पर पूंजी बाजार से छह माह के लिए रोक लगा दी। यह घटनाक्रम तो सांकेतिक है और वास्तविकता में 2008 से सोलह वर्षों का संघर्ष कितना कंटकारी रहा होगा, इसको समझना भी बहुत कठिन, कठोर और क्लिष्ट है। 

समय सदा एक जैसा नहीं रहता। भविष्य निस्संदेह अज्ञात हो सकता है परंतु भाग्य रेखा निरंतर संघर्ष से परिवर्तित की जा सकती है, इसमें ही कोई संदेह नहीं है। 

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