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लालच छोड़ भोजन की शुद्धता के लिए जैविक खेती की ओर बढ़ना होगा

किसान के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं। वह अपनी पैदावार बढ़ाना चाहता है ताकि अधिक से अधिक मुनाफा कमा सके। इसलिए पेस्टीसाइड्स और उर्वरकों का अधिकाधिक प्रयोग करता है। - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्रा

 

जब कभी त्यौहारी सीजन आता है, हमारे देश की विभिन्न जांच एजेंसियों के कान खड़े हो जाते हैं। दनादन छापेमारी का दौर शुरू होता है तो कहीं से नकली पनीर, कहीं से नकली मावा, नकली अखरोट, नकली काजू-बादाम आदि भारी संख्या में बरामद होता है। त्यौहार के बीतते ही जांच और कार्यवाई की गतिविधियां जैसे-जैसे कम होने लगती है उसके कई गुना रफ्तार से मिलावटखोरी का बाजार धड़ल्ले से चलने लगता है। विडंबना तो यह है कि कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारत में कृषि उत्पादों की शुद्धता भी अब पहले जैसी नहीं है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नागरिकों को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। इसके अंतर्गत जीवन के वो सभी पहलू शामिल हैं, जो जीवन के लिए मूलभूत और आवश्यक हैं। हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं। इनमें एक बड़ा कारक है- अशुद्ध खाद्य पदार्थ। हमारा स्वास्थ्य कैसा होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि हमारे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता कैसी है? कबीर की ये पंक्तियां बरबस याद आ जाती हैं- ‘जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय। जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।।’ अर्थात अगर हमें अपने तन-मन को स्वस्थ रखना है तो खाद्य पदार्थों की शुद्धता पर गंभीर होना पड़ेगा। गंभीर होने से तात्पर्य है कि हमें खाद्य पदार्थों के आपूर्ति चक्र को समझते हुए स्वयं, समाज और सरकार की भूमिका को भी समझना पड़ेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमें मिलने वाले खाद्य पदार्थों विशेषकर फल एवं सब्जियों की शुद्धता सवालों के घेरे में है। फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले जहरीले कीटनाशक, सिंथेटिक उर्वरक खेतों से चलके वाया भंडारण एवं प्रसंस्करण गृह, खाने की मेज तक आते हैं। 

पेस्टीसाइड्स एटलस-2022 रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग 38.5 करोड़ लोगों के बीमार पड़ने की वजह फलों एवं सब्जियों पर इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक हैं। एक अनुमान के मुताबिक जहरीले कीटनाशकों के अप्रत्यक्ष सेवन से वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष लगभग 11 हजार लोगों की मौत होती है। इन मौतों में 60 प्रतिशत से ज्यादा अकेले भारत में होती हैं। सीएसई के मुताबिक, भारत में प्रति वर्ष कीटनाशकों से जुड़े लगभग 10 हजार मामले सामने आते हैं।

भारतीय चिकत्सा अनुसंधान परिषद द्वारा 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में चयापचय संबंधी विकारों का प्रसार बहुत अधिक है। 11 प्रतिशत लोगों को मधुमेह है तो 35 प्रतिशत को रक्तचाप। वहीं 40 प्रतिशत पेट के मोटापे से पीड़ित हैं। स्वाभाविक है कि आम आदमी की जेब पर स्वास्थ्य के खर्चे का बोझ भी बढ़ रहा है। इस जहर के प्रभाव ने न केवल इंसानी शरीर, बल्कि हवा, पानी पर्यावरण तक को चपेट में ले लिया है, बल्कि पर्यावरण को स्वस्थ एवं मानव अनुकूल बनाने में मदद करने वाले अनेक छोटे जीव, पक्षी, की प्रजातियां भी विलुप्त हो चुकी हैं, या विलुप्ति के कगार पर हैं। एक अध्ययन यह भी दर्शाता है कि दुनिया की तकरीबन दो तिहाई भूमि की उत्पादकता पर कीटनाशकों का खतरा है। ये कीटनाशक न केवल मित्र कीटों को मार कर उपज को हानि पहुंचाते हैं, बल्कि तितलियों, पतंगों और मक्खियों को मार कर परागण को भी कुप्रभावित करते हैं, जिसका सीधा असर जैव-विविधता पर पड़ता है। 

स्पष्ट है कि हम और हमारा परिवेश-पोषण संक्रमण के दौर में है। मसला व्यक्तिगत स्वास्थ्य से ऊपर उठकर लोक स्वास्थ्य का है। ऐसे में पहला और बड़ा सवाल यह है कि संविधान से चलने वाले देश में क्या आम आदमी के प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण का मूल अधिकार सुनिश्चित हो पा रहा है, जिसमें आम आदमी को शुद्ध खाना, हवा और पानी मिल सकें। दूसरा स्वाभाविक सवाल है कि आम आदमी को शुद्ध खाद्य पदार्थ, फल और सब्जियां नहीं मिल पाने का जिम्मेदार कौन है? इस पर गंभीर और व्यापक विमर्श की दरकार है। उत्पादक किसान इस परिचर्चा की प्रत्यक्ष और महत्त्वपूर्ण कड़ी है। किसान के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं। वह अपनी पैदावार बढ़ाना चाहता है ताकि अधिक से अधिक मुनाफा कमा सके। इसलिए पेस्टीसाइड्स और उर्वरकों का अधिकाधिक प्रयोग करता है। 

दूसरी तरफ यह भी सच है कि ज्यादातर किसान पेस्टीसाइड्स के फॉर्मूला और उसके कुप्रभाव से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। कुछ प्रगतिशील किसान बताते हैं कि खेती में मौसम के मिजाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मौसम निकल जाने पर खेती प्रभावित हो जाती है। जब भी किसी फसल के लगाने का सीजन आता है, तो किसानों से सबसे पहले दरवाजे पर आकर पेस्टीसाइड्स और सिंथेटिक उर्वरक कंपनियों के सेल्समैन ही संपर्क करते हैं। धीरे-धीरे यही किसानों के मुख्य सलाहकार बन जाते हैं। किसानों को भी सुविधा होती है कि सलाह के साथ खाद और दवाइयां भी समय से और घर पर ही मिल जाती हैं। अलबत्ता, इतना जरूर है कि ये सेल्समैन किसानों को फायदे ही बताते हैं, खामियां नहीं। 

सरकारी व्यक्ति और संसाधन अक्सर किसान को समय पर नहीं मिल पाते। किसानों में एक नया ट्रेंड यह भी उभर रहा है कि वो अपने उपयोग के लिए उत्पादन अलग करते हैं, जिसमें ज्यादा जैविक संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं। बाजार में बेचने के लिए अलग उत्पादन कर रहे है, जिसमें पेस्टीसाइड्स और सिंथेटिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। ऐसी परिस्थिति में राज्य की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। राज्य के नीति-निर्देशक तत्व का अनुच्छेद 47 में पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार के लिए राज्य के कर्तव्य को दर्शाता है। राज्य पेस्टीसाइड्स मैनेजमेंट बिल, 2020 के प्रावधानों को ठीक से लागू करते हुए संबंधित संस्थाओं को सक्रिय करके इस दिशा में राहत दिया जा सकता है। आज आलम यह है कि भारत में अभी तक साढ़े पांच दशक पुराना इन्सेक्टिसाइड्स एक्ट, 1968 ही ज्यादा प्रभावी है। आधुनिक और मोबाइल प्रयोगशाला का संचालन हो जिससे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच की जा सके। समाज और सरकार की औपचारिक और अनौपचारिक सभी संस्थाओं को जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। लालच छोड़ पर्यावरण अनुकूल टिकाऊ जैविक खेती की दिशा में हमें बढ़ना ही होगा।

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